रविदास मेहरोत्रा से ने खास बातचीत की। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन की ओर से जानबूझकर पीड़ितों और उनके परिवारों पर दबाव डाला जा रहा है।
उन्होंने कहा कि हम यह चाहते हैं कि हम संभल जाएं, क्योंकि वहां आज जांच आयोग आया हुआ है। लेकिन डीएम और एसपी अपने हिसाब से बयान दिलवा रहे हैं, लोगों पर दबाव डालकर। हमें लगता है कि उत्तर प्रदेश में अघोषित रूप से आपातकाल जैसा माहौल है।
मेहरोत्रा ने आगे कहा कि हम लोकतंत्र सेनानी हैं और लोकतंत्र की रक्षा के लिए हर संघर्ष करने को तैयार हैं। भाजपा की नफरत फैलाने वाली राजनीति को हम स्वीकार नहीं कर सकते। जब तक संभल के लोगों को न्याय नहीं मिलेगा, हमारा संघर्ष जारी रहेगा।
इस बीच, सपा अध्यक्ष और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट कर अपनी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने लिखा, "प्रतिबंध लगाना भाजपा सरकार के शासन, प्रशासन और सरकारी प्रबंधन की नाकामी है। ऐसा प्रतिबंध अगर सरकार उन पर पहले ही लगा देती, जिन्होंने दंगा-फसाद करवाने का सपना देखा और उन्मादी नारे लगवाए तो संभल में सौहार्द-शांति का वातावरण नहीं बिगड़ता। भाजपा जैसे पूरी की पूरी कैबिनेट एक साथ बदल देते हैं, वैसे ही संभल में ऊपर से लेकर नीचे तक का पूरा प्रशासनिक मंडल निलंबित करके उन पर साजिशन लापरवाही का आरोप लगाते हुए सच्ची कार्रवाई करके बर्खास्त भी करना चाहिए और किसी की जान लेने का मुकदमा भी चलना चाहिए। भाजपा हार चुकी है।"
बता दें कि संभल में हुई हिंसा की न्यायिक जांच के लिए सीएम योगी ने बीते दिनों आदेश दिए थे। राज्य के गृह विभाग के आदेश के अनुसार, हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज देवेंद्र कुमार अरोड़ा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति को मामले की जांच का जिम्मा सौंपा गया है। समिति के दो अन्य सदस्य सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अमित मोहन प्रसाद और पूर्व आईपीएस अधिकारी अरविंद कुमार जैन हैं। समिति को दो महीने के भीतर रिपोर्ट देने को कहा गया है।