राकेश टिकैत ने मुजफ्फरनगर में पत्रकारों से बात करते हुए कहा, "यह बहुत दुखद है और इससे गन्ने के किसानों को परेशानी हो रही है। अगर मंत्रियों के ऐसे बयान आते हैं, तो लोगों को निराशा होती है। सरकार ने गन्ने का मूल्य 400 रुपये तय किया था, जबकि हमारी मांग 500 रुपये की थी। हमने कहा था कि 400 रुपये की बजाय 450 रुपये मिलना चाहिए, लेकिन सरकार ने इसे मानने से इनकार कर दिया। पिछले साल का गन्ना भुगतान अभी तक नहीं हुआ है। कई चीनी मिलों में लोगों का पिछला पैसा अटका हुआ है। हालांकि, लखनऊ में सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं। इससे भुगतान में थोड़ा फर्क आ सकता है, लेकिन यह अभी भी अधूरा है। किसान कर्ज में डूबे हुए हैं और उनका कर्ज माफ होना चाहिए, लेकिन कर्ज माफी का कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। यूरिया की कालाबाजारी हो रही है।"
उन्होंने आगे कहा, "एमएसपी गारंटी, स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट, और जीएम (जेनेटिकली मोडिफाइड) बीज के मुद्दे पर भी हम बात कर रहे हैं। बिजली के बिलों का निजीकरण हो रहा है, चाहे राजस्थान हो या उत्तर प्रदेश, हम कर्मचारियों के साथ हैं और उनकी समस्याओं को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। स्मार्ट मीटर लगाने की योजना है, जिससे बहुत से कर्मचारियों की छंटनी हो सकती है।"
उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री मोदी अक्सर किसानों के बारे में बात करते हैं, लेकिन धरातल पर कोई बदलाव नहीं दिखता। किसान की जमीन तेजी से छीनी जा रही है, चाहे वह सड़क निर्माण के नाम पर हो या उद्योगों के लिए। भूमि अधिग्रहण एक्ट के तहत यह समस्या बढ़ रही है, लेकिन ये समस्याएं अभी तक हल नहीं हो पाई हैं। किसान संगठन भी जमीन के मुद्दे पर संघर्ष कर रहे हैं और इसके खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। किसानों के लिए स्थिति और भी कठिन हो रही है। शिक्षा और स्वास्थ्य के अधिकार पर काम किया जा रहा है, लेकिन इसके मानक पूरे नहीं हो पा रहे हैं।"